मुझसे डरो
मुझसे डरो, मैं रोज़ चल रहा हूँ
मुझसे डरो, मैं हर पल जल रहा हूँ
जो असंभव सा अचल है, उस पर चढ़ रहा हूँ
जो डगर है मुश्किल सी, उस पर बढ़ रहा हूँ
कौन आएगा राह को रोकने, सोच रहा हूँ
कौन बांधेगा मेरे अश्व को, खोज रहा हूँ
मेहनत के मेरे पसीने सुखा सके, वो वस्र ओढ़ रहा हूँ
शौर्य को मेरे चुनौती दे सके, वो अस्र तोड़ रहा हूँ
मुझसे डरो, मैं रोज़ चल रहा हूँ
मुझसे डरो, मैं हर पल जल रहा हूँ
– नितिन दक्षिणी